तीन तलाक़ और उसपर मुस्लिम समाज का नजरिया

Fellows: सबा शेख, हूमा फारुकी, गज़ाला अफरीन, अलफरनास सोलकर, नगमा शाह, मिस्बाह खान, पारस नाईक, एहतेशाम पीरज़ादे

Methodology: संख्यात्मक और गुणात्मक. ४१३ मुस्लिम महिला और पुरुष का सर्वे लिया, ३ सामाजिक संस्थाओं का इंटरव्यू लिया जो महिलाओं के लिए काम करती हैं, ३ एक्सपर्ट इंटरव्यू, एक महिला जिसका तीन तलाक़ हुआ है उसका इंटरव्यू लिया, दारुल कज़ा इस संस्था से मुलाकात

Localities: धारावी, वडाला, गोवंडी, मलाड, जोगेश्वरी, अंधेरी, दादर, वरली

२७ अगस्त २०१७ में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया जिसमे एक बार में दी जाने वाली तीन तलाक़ को असंवैधानिक करार दिया| उसके बाद सरकार ने ३ तलाक़ देने वाले मुस्लिम मर्द के लिए एक बिल बनाया जिसे १ दिन में लोक सभा में मंजूरी मिल गई| इस मुद्दे को लेकर हर जगह चर्चा हो रही थी बड़े बड़े लोग इस पर अपनी राय दे रहे थे लेकिन मुस्लिम समाज के लोग जिनके हक़ में ये क़ानून बनाने की बात की जा रही थी उनकी राय भी बहुत ज़रूरी है क्यूंकि इस कानून से उन्हें ही फायदा या नुकसान होगा| इसलिए हमारे कुछ फेलोज जो मुस्लिम समाज से थे उन्होंने इस विषय के बारे में सोचा और तीन तलाक पर मुस्लिम समाज का नज़रिया इसे अपना रिसर्च का विषय चुना| मुंबई के अलग अलग इलाके जहां मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा रहता है जैसे के गोवंडी, वडाला, धारावी, मालाड, जोगेश्वरी जैसे इलाकों में लोगों से बात की, इसके अलावा वरली, दादर और अंधेरी जैसे इलाको से भी कुल 413 मुस्लिम मर्द और औरत का सर्वेक्षण किया।

Findings: ४१३ लोगो के सर्वे में ४३% लोग २० से २९ साल के थे जिससे ये कहा जा सकता है के ज्यादा तर राय नौजवान लोगों की है। मुस्लिम समाज में शिक्षा का प्रमाण बहुत कम है जिसमे महिलाओं का शिक्षा दर एक चिंता का विषय है| इस सर्वे के दौरान ये भी पता चला जहां १४% अशिक्षित लोगो में ९०% महिलाएं थीं। सर्वे से पता चला के तलाक लेने का हक जैसे फस्ख ए निकाह, तलाक़ ए तफवीज और खुला के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी नहीं थी जिसमें महिलाओं का प्रतिशत ज्यादा है जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है के शिक्षा के अभाव और जानकारी की कमी की वजह से महिलाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता होगा। ८१% लोगों ने तीन तलाक को गलत कहा जब उसी तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया तो ८४% लोगों के मुताबिक यह शरीयत में दखल अंदाजी है लोगो का कहना था के फैसला करना है तो मुस्लिम विद्वान उलमा और मौलानाओं के जरिए ही किया जाए इससे पता चलता है के अगर कोई फैसला सुप्रीम कोर्ट या सरकार के जरिए लिया जाता है तो लोग उसे तब्दीली को आसानी से स्वीकार नहीं करते।
तीन तलाक बिल जो सरकार के द्वारा पेश किया गया ७७% लोगों ने उसे गलत करार दिया |तीन तलाक बिल को लेकर लोगों के मन में यह डर था कि जब तलाक देने बाद अगर शौहर जेल में जाएगा तो कैसे वह अपनी बीवी और बच्चों का खर्चा संभालेगा? इसी तरह कानून का नॉन बेलेबल और कॉग्निजेबल ऑफेंस होना जिससे शौहर को बगैर वारंट के भी जेल में डाला जा सकता है, इन बात से लोगों के मन में डर दिखाई दिया इस कानून से महिला को इंसाफ की बजाय और ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ेगा जैसे पुलिस के चक्कर लगाना कोर्ट में चक्कर लगाना वगैरा ऐसा लोगो का कहना था।

Limitations: रिसर्च में बहुत सी तब्दीली करनी पड़ी जैसे के target population को बदलना, रिसर्च मेथोडोलॉजी को बदलना और सर्वे को 100 से बढ़ा कर 400 तक करना। 3 तलाक जैसे चर्चित मुद्दे पर लोगो से बात करना भी 1 बड़ी चुनौती थी।

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